अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप: 20+ की मौत, राहत कार्य फिर हेलिकॉप्टर भरोसे

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

रविवार की रात, अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी पहाड़ी इलाकों में 6.0 तीव्रता का भूकंप आया। वक्त था रात के 11:47 बजे, जब लोग या तो सो रहे थे या बिजली ना होने के कारण अंधेरे में ही बैठे थे। इस झटके ने सबसे ज़्यादा असर डाला कुनार और नंगरहार सूबों पर — यानी वही इलाके जो हर साल प्राकृतिक आपदाओं की हिट लिस्ट में सबसे ऊपर होते हैं।

अब तक 20+ मौतें, लेकिन असली आंकड़े अभी पहाड़ों में फंसे हैं

स्थानीय अधिकारियों की मानें तो अब तक 20 से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं और 115 से ज़्यादा घायल अस्पतालों में भर्ती हैं। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि असली आंकड़े अब भी उन पहाड़ों के पीछे छुपे हैं जहां न तो सड़क है, न नेटवर्क, और न ही हेल्पलाइन पहुंच रही है।

तालिबान सरकार का कहना है कि मृतकों की संख्या सैकड़ों में हो सकती है — और अगर इतिहास गवाह है, तो ये आशंका बहुत दूर नहीं लगती।

कुनार सूबे की 90% ज़मीन पहाड़ी है, यानी पहले से ही ज़िंदगी ऊबड़-खाबड़। अब जब भूकंप के साथ भूस्खलन भी आया है, तो जो राहत सामग्री भेजी जा रही थी, वो भी रास्ते में रुक गई है।

भूकंप के बाद मोबाइल नेटवर्क कई इलाकों में पूरी तरह ठप हो चुका है। अब न कॉल जा रही है, न मैसेज आ रहे हैं।

तालिबान के अधिकारी भी सिर पकड़ कर बैठे हैं, “बचाव टीमों को भेजें तो भेजें कैसे? और भेजें तो वो पहुंचें कैसे?”

हेलिकॉप्टर ही आख़िरी आस

तालिबान सरकार ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों से हेलिकॉप्टर की मांग की है, क्योंकि जमीन से राहत कार्य अब लगभग नामुमकिन हो चुका है। उनका साफ़ कहना है — “सड़कें गई, अब हवा ही सहारा है।”

यानी अब पूरा बचाव कार्य हवाई रास्ते से ही चलाया जा रहा है। लेकिन दिक्कत ये है कि तालिबान के पास खुद के हेलिकॉप्टर सीमित हैं — और बाकी सबके पास जवाब नहीं, सिर्फ़ “हम देख रहे हैं” वाला आश्वासन है।

आपको याद दिला दें — 2022 में भी अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप आया था जिसमें करीब 1,000 लोगों की मौत हुई थी। उस वक़्त भी राहत और बचाव का एक ही रास्ता था — हेलिकॉप्टर। और इस बार फिर वही कहानी दोहराई जा रही है।

जान बची तो राहत नहीं, राहत मिली तो वक्त पर नहीं

भूकंप की इस त्रासदी में एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान ने दिखाया कि “जान बचाना अभी भी एक लक (luck) है, स्किल नहीं।”
जब तक बुनियादी ढांचा नहीं सुधरेगा, तब तक हर भूकंप के बाद यही हेडलाइन बनती रहेगी — “राहत कार्य बाधित, हेलिकॉप्टर की गुज़ारिश”

ज़मीन कांपती है, पर सिस्टम क्यों नहीं?

भूकंप तो प्रकृति की चेतावनी है — लेकिन अफ़सोस कि हर बार सरकारी व्यवस्थाएं ही सबसे पहले गिरती हैं। भूकंप से नहीं, नाकामी से डरिए — क्योंकि ये बार-बार आती है, और हर बार जानें ले जाती है।

मूवी रिव्यू “बरसात की रात” – जब बारिश से ज़्यादा अमन की शायरी में पानी था

Related posts

Leave a Comment